bhool chuk maaf movie review in hindi । राजकुमार राव की अधूरी उड़ान

bhool chuk maaf movie review

भूल चूक माफ़ फ़िल्म एक टाइम-लूप कॉमेडी के रूप में, यह एक अंधेरे में फंसे लड़के के जीवन में चल रही उलझनों के आधार के साथ पूरी तरह से आगे निकलना  है।

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भूल चूक माफ़ मूवी रिव्यू: टाइम-लूप में उलझी राजकुमार राव की अधूरी उड़ान

⭐ 2/5 | रिव्यू: सैबल चटर्जी | दिनांक: 23 मई 2025 | नई दिल्ली

राजकुमार राव और वामिका गब्बी स्टारर यह फिल्म बनारस की गलियों में एक काल्पनिक टाइम-लूप के जरिए हँसी और उलझनों का ताना-बाना बुनने की कोशिश करती है, लेकिन कमजोर पटकथा और बेतरतीब कहानी के कारण दर्शकों को उलझा कर छोड़ देती है।


कहानी: गोल-गोल घूमती उलझनों की कथा

“भूल चूक माफ़” की कहानी बनारस के एक युवक रंजन तिवारी (राजकुमार राव) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो सरकारी नौकरी की तलाश में है ताकि वह अपनी प्रेमिका तितली मिश्रा (वामिका गब्बी) से शादी कर सके। मगर शादी से ठीक पहले एक रहस्यमयी घटना घटती है – रंजन एक टाइम-लूप में फंस जाता है, जहां हर दिन दोबारा हल्दी समारोह से शुरू होता है।


प्रस्तुति: न हास्य, न रहस्य

फिल्म की सबसे बड़ी समस्या इसका बिखरा हुआ लेखन है। निर्देशक करण शर्मा ने जिस टाइम-लूप और रोमांटिक कॉमेडी की शैली को अपनाया है, वह न तो गहराई से समझाई गई है और न ही दिलचस्प ढंग से पेश की गई है। स्त्री जैसी फिल्मों की सफलता को दोहराने की कोशिश करते हुए, यह फिल्म शैलीगत मिश्रण में उलझ जाती है।


अभिनय: शानदार कास्ट, सीमित असर

राजकुमार राव हमेशा की तरह दमदार हैं और वामिका गब्बी उन्हें अच्छा साथ देती हैं। सीमा पाहवा (रंजन की माँ), रघुबीर यादव (बेरोजगार पिता), संजय मिश्रा (भगवान दास) और इश्तियाक खान (मामा) जैसे कलाकारों की मौजूदगी फिल्म को क्षणिक ऊर्जा देती है। फिर भी, उनके किरदार गहराई से विकसित नहीं किए गए हैं।


तकनीकी पक्ष: सतही चमक, गहराई की कमी

बनारस की लोकेशन और फिल्मांकन में रंग तो है, लेकिन पटकथा कमजोर है। संवादों में तीखापन नहीं है, और टाइम-लूप जैसी जटिल अवधारणा को बहुत ही सतही तरीके से दर्शाया गया है। बैचलर पार्टी सीन और आइटम नंबर सिर्फ खानापूर्ति लगते हैं।


निष्कर्ष: माफ़ी के काबिल नहीं ‘भूल चूक’

“भूल चूक माफ़” अपने नाम की तरह एक गलती है जिसे माफ़ करना मुश्किल है। यह एक दिलचस्प कॉन्सेप्ट पर बनी फिल्म हो सकती थी, लेकिन रचनात्मक रूप से इसकी पकड़ बहुत कमजोर है। न हास्य उभरता है, न रोमांच, न भावनाएं – बस एक चक्करदार अनुभव, जो थका देता है।

यदि आप राजकुमार राव के कट्टर प्रशंसक हैं, तो फिल्म देखने जा सकते हैं – वरना इस “भूल” को माफ़ करना ही बेहतर होगा।


 

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